Best Hindi Kahani - लालच बुरी बला है (lalach buri bala hai)

Hindi Kahani – लालच बुरी बला है! (Lalach buri bala hai)

लालच बुरी बला है, ये sentence जब भी सुनो तो दिमाग में बचपन में सुनी एक कहानी दौड़ लगा जाती है, जिसका शीर्षक था – “The Greedy Dog.”

ये लालच बुरी बला है पर एक छोटी सी कहानी थी, जिसमे एक कुत्ता भूखा होने पर इधर-उधर अपने लिए खाने की तलाश कर रहा होता है। बहुत देर तक इधर-उधर भटकने के बाद कहीं से उसको एक हड्डी का टुकड़ा मिल जाता है। वह उस टुकड़े को मुँह में दबाकर अपने ठिकाने की ओर चल पड़ता है। रास्ते में एक लकड़ी का पुल पड़ता है।

लकड़ी का पुल पार करते समय उसे अपनी परछाई पानी में दिखती है। उसे लगता है ये कोई दूसरा कुत्ता है, जिसके पास एक और हड्डी का टुकड़ा है। उसके मन में लालच आ जाता है और वो सोचने लगता है की अगर मुझे ये हड्डी भी मिल जाये तो फिर आज मैं पेट भर के खाना खा सकता हूँ।

ऐसा सोचते ही वो तुरंत अपनी परछाई पर गुर्राने लगता है, बदले में परछाई भी गुर्राने लगती है। कुत्ते को गुस्सा आ जाता है और वो परछाई वाली हड्डी पाने के लिए गुस्से से भोंकने के लिए जैसे ही अपना मुँह खोलता है, उसके मुँह की हड्डी नीचे पानी में गिर जाती है। और कुत्ते को भूखा ही रहना पड़ता है। लालच में वो अपने पास की हड्डी भी गँवा बैठता है। इसलिए कहते हैं “लालच बुरी बला है”

ये तो थी “लालची कुत्ते” की कहानी। लेकिन लालच बुरी बला है ये साबित करने के लिए मैं आज आपको एक दूसरी कहानी इंसानों के लालच पर सुनाने जा रहा हूँ।

Hindi Kahani लालच बुरी बला है

अब पढ़िए लालच बुरी बला है पर इंसानों के लालच की कहानी:

यह रमेश की कहानी है, जो एक गरीब किसान था। उसके पास थोड़ी बहुत जमीन थी जिस पर खेती-किसानी कर वो अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। एक बार गाँव में भयंकर अकाल पड़ा। रमेश की खेती पूरी तरह से बरबाद हो गई और वो पैसे पैसे के लिए मोहताज़ हो गया। अकाल के कारण उसके गाँव के कई लोग शहरों में मेहनत-मजदूरी करके पैसा कमाने के लिए अपना गाँव छोड़कर जाने लगे।

रमेश ने भी परिवार सहित गाँव छोड़ शहर जाकर मेहनत-मजदूरी करने का मन बना लिया। और फिर एक दिन वो शहर पहुँच गया। शहर पहुँच कर उसने अपने परिवार के लिए रहने की व्यवस्था की और फिर अपने लिए काम की तलाश में निकल गया।

अपनी आजीविका चलाने के लिए वो कई दिनों तक इधर-उधर छोटे-मोटे हर तरह के काम करता रहा। एक दिन उसने देखा शहर में कई लोग सब्जियों का ठेला लगाते हैं और फिर गली-गली जाकर उसे बेचते हैं। उसे लगा ये काम वो भी कर सकता है।

जल्दी ही उसने अपने लिए एक हाथठेले की व्यवस्था कर ली। अब वो सुबह जल्दी थोक मार्केट से सब्जियां लेकर आता, उन्हें अपने ठेले पर सजाता और फिर उन सब्जियों को बेचने के लिए निकल जाता शहर की गलियों में।

उसका ये धंधा अच्छा चलने लगा। उसको अपने इस धंधे से अच्छी-खासी कमाई होने लगी। धीरे धीरे सबकुछ पटरी पर आ जाने से वो और उसका परिवार अब खुशहाल जिंदगी जी रहे थे।

रमेश के मित्र ने दी उसको कुछ बड़ा करने की सलाह

सब कुछ बढ़िया चल रहा था की एक दिन रमेश के एक मित्र ने उससे कहा तू कब तक ऐसे गलियों में जा-जाकर सब्जियां बेचता रहेगा। अब कुछ बड़ा सोच, कुछ ऐसा कर कि दिनभर यूँ गलियों में भटकना ना पड़े। रमेश ने कहा, ‘भाई क्या करें, इन सबमे मेहनत तो बहुत है, सुबह जल्दी उठो। सब्जियों खरीद कर लाओ फिर उन्हें गली-गली जाकर बेचो। लेकिन मैं और कर भी क्या सकता हूँ? “

रमेश के मित्र ने कहा, “कर क्यों नहीं सकता भाई? आजकल पैसा कमाने के लिए बहुत कुछ है करने को। मैं तुझे बताता हूँ बस तू वैसा कर इस बार, देखना फिर कैसे माला-माल होता है तू।”

रमेश बोला, “भाई जल्दी बता, ऐसा क्या कर सकता हूँ मैं?”

मित्र ने कहा, “तू इस बार प्याज़ की फसल में जितनी हो सके उतनी प्याज खरीद कर रख लेना। थोड़े दिनों बाद ही तू देखना प्याज़ के दाम आसमान छूने लगेंगे और बस जब इसके दाम बढ़ जाये तो उन्हें अपने भंडार से निकालकर बेचना और फिर देखना तुझे कितना फायदा होता है, एक बार में ही मालामाल न हो जाए तो कहना।”

रमेश कहने लगा, “अरे नहीं यार, अगर दाम नहीं बढे तो मेरा नुकसान हो जायेगा।”

मित्र बोला, “अरे मैं guarantee दे रहा हूँ, तू खरीद कर रख लेना। तुझे फायदा ही होगा, नुकसान नहीं होगा।”

रमेश ने मित्र की बात मानने का फैसला किया

रमेश ने हाँ में सिर हिलाया और उसके पास से उठकर चला गया। वो पूरी रात इस बारे में सोचता रहा और फिर फैसला किया, मैं ज्यादा risk नहीं उठाऊंगा। थोडा बहुत ही प्याज खरीदकर रखूँगा।और फिर प्याज की फसल आते ही उसने अपनी जमापूंजी और कुछ पैसा उधार लेकर प्याज खरीदकर रख लिया। कुछ महीनों बाद ही प्याज़ के दाम बढ़ने लगे।

अब रमेश अपने जमा किये हुए प्याज को निकालकर महँगे दामों में बेचने लगा और उसने प्याज़ पर जबरदस्त मुनाफा कमाया। पर उसे इस बात का अफ़सोस भी हो रहा था की उसने इतना कम प्याज़ क्यों ख़रीदा? अगर अधिक प्याज़ होता तो मुनाफा भी बढ़ जाता।

एक अच्छा idea देने के लिए उसने अपने मित्र को धन्यवाद् दिया और अब प्याज़ की अगली फसल का इंतज़ार करने लगा। जैसे ही प्याज़ की नई फसल आई, इस बार उसने काफी पैसा उधार लेकर बड़ी मात्रा में प्याज़ जमा कर लिया। पिछली बार की ही तरह इस बार भी कुछ महीनों बाद ही प्याज़ के दाम आसमान छूने लगे। रमेश अपना जमा किया हुआ प्याज़ महँगे दामों पर बेचने लगा और इस बार उसको पिछले वर्ष के मुकाबले कई गुना मुनाफा हुआ। सारी उधारी चुका देने के बाद भी उसके पास काफी पैसा बच गया।

रमेश का लालच अब और अधिक बढ़ चुका था

अगले साल उसने और भी अधिक प्याज़ खरीदने का मन बना लिया। लेकिन प्याज़ की फसल आने से पहले ही उसका accident हो गया और उसने बिस्तर पकड़ लिया। उसके इलाज में बहुत पैसा खर्च हुआ और उसकी लगभग सारी जमा-पूंजी ही खत्म हो गयी। वो जब ठीक हुआ तब तक प्याज़ की फसल भी खत्म हो चुकी थी और प्याज़ के दाम बढ़ने शुरू हो गए थे।

अभी प्याज़ के दाम ज्यादा नहीं बढे थे, रमेश ने सोचा यदि मैं इस दाम में भी प्याज़ खरीदकर रख लेता हूँ तो भी मैं अच्छा-खासा मुनाफा कमा लूँगा। ये सोचकर उसमे market से बहुत सारा पैसा उधार लेकर बढे हुए दामों पर प्याज़ खरीदकर उसका stock कर लिया। अब वो प्याज़ के दाम और अधिक बढ़ने का इंतज़ार करने लगा। लेकिन तभी government ने decision ले लिया कि इस बार प्याज़ के दामों को control में रखने के लिए प्याज़ बाहर से आयात किया जायेगा।

Government ने तुरंत ही अपने decision पर action लेते हुए प्याज़ का आयात कर लिया और उसे कम दामों में market में बेचना शुरू कर दिया। सभी जमाखोरों की हालत पतली हो गई और उन्हें भी अपना जमा किया हुआ प्याज़ बाजार में बेचने के लिए बाहर निकालना पड़ा, जिससे प्याज़ के दामों में तुरंत ही गिरावट आ गई।

रमेश को भी पता चल गया कि इतनी अधिक प्याज़ बाजार में उपलब्ध होने से अब प्याज़ के दाम नहीं बढ़ेंगे। इसलिए उसको भी अपने प्याज़ कम दामों में बेचने पड़े। पर इस बार उसका नुकसान लाखों रुपये का था। एक तो दुर्घटना की वजह से वैसे ही उसके पास कुछ नहीं बचा था और फिर इस नुकसान ने तो उसका सबकुछ फिर से बर्बाद कर दिया।

लालच ने रमेश को कर दिया बर्बाद

अब लेनदार उसको आये-दिन परेशान करने लगे। वो सब तुरंत अपना पैसा वापस चाहते थे। रमेश को कुछ भी सूझ नहीं रहा था। लालच में आकर उसने खुद ही अपना घर-संसार बरबाद कर लिया था। वो बहुत अधिक tension में रहने लगा था। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इतनी देनदारियां वो कैसे पूरी कर पायेगा।

और फिर एक दिन उसके घर से चार लाशें मिली। उसने बीवी-बच्चों सहित फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। उसके अपने लालच की सजा पूरे परिवार को भुगतनी पड़ी।

इसीलिए बड़े-बुजुर्गों ने कहा है, “लालच बुरी बला है।”

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