Moral Story in Hindi- सबसे महान कौन?

Moral Story in Hindi– सबसे महान कौन ?

महाराजा कर्ण सिंह अपने समय के बहुत बड़े राजा थे। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुख से जीवन व्यतीत कर रही थी। महाराजा कर्ण सिंह बहुत ही न्यायप्रिय शासक थे, उनके राज्य में सभी को सही और पूर्ण न्याय मिलता था और इसलिए पूरी प्रजा, दरबारी सभी राजा की बहुत तारीफ किया करते थे।

महाराजा कर्ण सिंह एकांत में होते तो अपने आप से यही प्रश्न करते, “क्या वास्तव में मैं इतना अच्छा हूँ या लोग ऐसे ही मेरी तारीफ करते रहते हैं?”

एक बार जब राजा को इस प्रश्न ने बहुत परेशान कर लिया तो उन्होंने अपने सभी दरबारियों की बैठक बुलाई और उनसे यही प्रश्न किया, “क्या आप लोग यह बता सकते हैं कि क्या मुझमे वास्तव में ही कोई दोष नहीं है?”

दरबारियों ने जवाब दिया, “महाराज आपमें तो दोष निकालना स्वयं भगवान में दोष निकालने जैसा है। आप तो न्यायप्रिय, जनता के दुखों को दूर करने वाले दयालु राजा हैं।”

महाराजा कर्ण सिंह उनके इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने अगले दिन पूरी जनता का दरबार लगाया और जनता से भी वही सवाल पूछा।

“मेरी प्रिय प्रजा! आप लोग ही बताएं कि क्या आपके राजा में कोई दोष है, क्या मेरे राज्य में कोई दुखी है?”

जनता ने जवाब दिया, “महाराज! आप कैसी बात करते हैं? आप जैसा राजा तो युगों में एक बार पैदा होता है, आपके राज में हम पूरी तरह से सुरक्षित और सुखी हैं। आप तो हमारे लिए देवता समान हैं।”

Moral Story in Hindi- दरबारियों और प्रजा के मुख से अपनी प्रशंशा सुनकर भी राजा को यकीन नहीं हुआ, पढ़िए अपनी दिल की संतुष्टि के लिए आगे राजा ने क्या किया?

प्रजा से अपनी प्रशंसा सुनकर भी महाराजा कर्ण सिंह का मन संतुष्ट नहीं हुआ। उन्हें यही लग रहा था कि ये लोग मेरे मुँह पर ही मेरी तारीफ कर रहे हैं। आखिर किसमें इतनी हिम्मत हो सकती है कि अपने राजा को उसके मुँह पर उसे बुरा कह सके। राजा ने सोचा मुझे सच का पता करने के लिए अपने देश का भ्रमण करना होगा। ये विचार आते ही उन्होंने अपने सारथी को कहा, “तुम रथ तैयार करो, हम अपने पूरे देश में घूमना चाहते हैं।”

सारथी ने रथ तैयार कर दिया और राजा अपने दोष जानने के लिए देश भ्रमण को निकल पड़ा। उसने शहर-शहर, गाँव-गाँव जाकर लोगों से उनके राजा के बारे में पूछा, सभी से एक ही जवाब मिला, “महाराजा कर्ण सिंह जैसा राजा तो युगों में एक बार जन्म लेता है, उसके राज्य में हम पूरी तरह से सुखी और संतुष्ट हैं।”

राजा यह जानकर बहुत खुश हुआ कि उसके राज्य में सभी बहुत सुखी और खुश हैं। उसे यह जानकर बहुत संतुष्टि मिली। इसलिए अब उसने सारथी से रथ अपनी राजधानी की ओर मोड़ लेने को कहा।

Moral Story in Hindi- अपनी प्रजा के मुख से प्रशंशा सुनकर राजा के मन को संतुष्टि तो मिल गई, लेकिन लौटते समय राजा के साथ क्या घटना घटी, जानिए आगे की कहानी में…

राजधानी की ओर जाते हुए रथ एक पुलिया के पास पहुँची। इस पुलिया की चौड़ाई बहुत कम थी और एक समय में इससे से एक ही रथ जा सकता था। सारथी ने देखा पुलिया पार करते हुए दूसरी तरफ से भी एक रथ आ रहा है। अब दोनों रथ एक-दूसरे के आमने-सामने आकर खड़े हो गए। दोनों में से कोई भी अपने रथ को पीछे हटाने के लिए तैयार नहीं हुआ।

महाराजा कर्ण सिंह का सारथी बोला, “देखो भाई! तुम अपना रथ पीछे हटा लो, ये महाराजा कर्ण सिंह का रथ है। तुम तो जानते हो प्रत्येक महान व्यक्ति के लिए रास्ता छोड़ देने की प्रथा चली आ रही है।”

“भाई! ये रथ भी कौशल के महाराजा का है और हमारे महाराज भी किसी से कम श्रेष्ठ नहीं। इसलिए रास्ता तो आपको ही देना होगा” – दूसरे सारथी ने जवाब दिया।

दोनों ही सारथी अपने राजा का गुणगान कर रहे थे, दोनों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं था।

महाराजा कर्ण सिंह का सारथी अपने राजा की बहुत तारीफ कर रहा था तभी दूसरे सारथी ने कहा, “अपने मुँह से अपनी शेखी बघारने से क्या होता है? तारीफ तो वह है, जो स्वयं प्रजा करे। तुम्हारे राजा में ऐसा कौनसा गुण है, जिसके कारण तुम इन्हें सर्वश्रेष्ठ कहते हो।”

सारथी बोला –“हमारे राजा के राज्य में प्रजा पूरी तरह से सुखी और खुश है। पूरे राज्य की जनता इनकी तारीफ करते नहीं थकती है। हमारे राजा कर्ण सिंह भलाई का बदला भलाई और बुराई का बदला बुराई से देते है, यही इनका सबसे बड़ा गुण है।”

दूसरा सारथी बोला, “यदि ये तुम्हारे राजा का सबसे बड़ा गुण हैं तो फिर और किसी अवगुण की तुम्हारे राजा को क्या जरूरत है। हमारे महाराज तो इसे सबसे बड़ा दोष मानते हैं।”

Moral Story in Hindi- महाराजा कर्णसिंह का सारथी जिसे अपने राजा का सबसे बड़ा गुण बता रहा था, दूसरे सारथी ने तो उसे सबसे बड़ा अवगुण बता दिया। क्या था उसके राजा का गुण, पढ़िए आगे की कहानी…

“तुम बकवास करना बंद करो। तुम बताओ तुम्हारे महाराज में ऐसा कौनसा गुण है जो तुम हमारा रास्ता नहीं छोड़ रहे और इतनी अकड़ दिखा रहे हो” – कर्ण सिंह के सारथी ने कहा।

दूसरे सारथी ने जवाब दिया, “तो सुनो मेरे महाराज बुराई का बदला भी भलाई से देते हैं, भलाई का बदला भलाई से देना तो आम बात है। किन्तु जो लोग मेरे महाराज को नुकसान कर देते है, वह उन लोगों की भी बिना किसी भेदभाव के भलाई करते हैं।”

राजा कर्ण सिंह ने जब ये शब्द सुने तो उनकी आत्मा स्वयं बोल पड़ी, “वास्तव में यही राजा सर्वश्रेष्ठ है, महान है।”

वह अपने रथ से नीचे उतर आये और दूसरे राजा के सम्मुख हाथ जोड़कर बोला, “महाराज आप महान है! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। आज पहली बार मुझे अपने दोषों का आभास हुआ है।” और फिर कर्ण सिंह ने आने सारथी को कहा, “अपना रथ हटा लो, इस महान राजा के रथ को पहले निकलने दो।”

दूसरे राजा ने कहा, “कर्ण सिंह! आप वास्तव में महान हैं, जो इतनी विनम्रता से अपने दोष को स्वीकार कर लिया।”

दोनों राजा एक-दूसरे के गले मिले और फिर मित्र बन गए।

Moral Story in Hindi – “हमारी महानता हमारी विनम्रता में ही है।”

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