Good Manners story | हिंदी कहानी अच्छा व्यवहार
Good Manners story of Saint Tukaram – एक बार संत तुकाराम अपने आश्रम में बैठे हुए थे। उनका एक शिष्य जो थोड़ा क्रोधी स्वभाव का था, उनके पास आया और बोला, ” गुरुजी आप कैसे अपना व्यवहार इतना मधुर बनाए रखते हैं? ना तो आप किसी पर कभी क्रोध करते हैं, ना ही कभी किसी को कुछ भला बुरा कहते हैं। कृपया अपने इस अच्छे व्यवहार का रहस्य मुझे भी बताएं।
उसकी बात सुनकर संत तुकाराम बोले, “मुझे अपने रहस्य के बारे में तो नहीं पता पर मैं तुम्हारा एक रहस्य जानता हूं।”
शिष्य ने आश्चर्य से पूछा, “मेरा रहस्य! वह क्या है गुरु जी?”
संत तुकाराम दुखी से होते हुए बोले, “तुम अगले एक हफ्ते में मरने वाले हो।”
कोई और यह बात कहता तो शिष्य इसे मजाक में टाल सकता था। पर स्वयं अपने गुरु संत तुकाराम के मुख से निकली बात को वह कैसे नजरअंदाज कर सकता था। संत की बात सुन शिष्य मन ही मन बहुत उदास हो गया और उस समय गुरु का आशीर्वाद लें वहां से चला गया।
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वहां से जाने के बाद शिष्य का स्वभाव बिल्कुल ही बदल गया। वह हर किसी से प्रेम से मिलता और कभी किसी पर क्रोध ना करता। अपना ज्यादातर समय ध्यान और पूजा में लगाता। वह उन सभी लोगों के पास गया जिनके साथ उसने कभी गलत व्यवहार किया था उसने उन सभी से अपने गलत व्यवहार के लिए माफी भी मांगी।
देखते ही देखते संत की भविष्यवाणी को एक हफ्ता पूरा होने को आया। शिष्य ने सोचा, अब तो मेरी मृत्यु का समय निकट आ गया है। चलो आखरी बार गुरु के दर्शन कर आशीर्वाद ले लेता हूं। वह संत तुकाराम के पास पहुंचा और बोला, “गुरु जी आप की भविष्यवाणी के अनुसार मेरा समय अब पूरा होने वाला है। मेरी मृत्यु का समय निकट आ गया है। कृपया आप मुझे आशीर्वाद दें।”
संत तुकाराम ने कहा, “मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है पुत्र। अच्छा यह बताओ पिछले सात दिन तुम्हारे कैसे बीते? क्या तुम पहले ही की तरह लोगों से नाराज हुए, तुम्हें उसी तरह अभी भी क्रोध आया? क्या तुमने उन्हें अपशब्द कहे?
शिष्य बोला, “नहीं नहीं गुरु जी बिल्कुल भी नहीं। मेरे पास जीने के लिए सिर्फ सात दिन थे, मैं इसे बेकार की बातों में कैसे गँवा सकता था? मैं तो इस दौरान सबसे प्रेम से मिला और जिन लोगों का कभी दिल दुखाया था उन सब से क्षमा भी मांगी।”
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संत तुकाराम मुस्कुराए और बोले, “बस यही तो मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है। मैं जानता हूं कि मैं कभी भी मर सकता हूं, इसलिए मैं हर किसी से प्रेम पूर्ण व्यवहार करता हूं।”
शिष्य को समझ में आ गया कि संत तुकाराम ने उसे जीवन का यह पाठ पढ़ाने के लिए ही मृत्यु का भय दिखाया था।
दोस्तों हमारे साथ भी क्या अक्सर ऐसा नहीं होता! हम भी जाने या अनजाने किसी भी छोटी – बड़ी बात पर सामने वाले से उलझ जाते हैं। अपना व्यवहार उसके साथ ख़राब कर लेते हैं। ज्यादातर मामलों में बाद में हमें ही पछतावा होता है और हम सोचते हैं कि फालतू ही गहमा गहमी हो गई। जबकि इस मामले को शांति से भी सुलझाया जा सकता था। तो बाद में पछतावे से अच्छा है हम पहले ही अपना व्यवहार सयंमित रखें। लोगों के साथ क्रोध के बजाय प्रेम से बात करें। तो हमारा व्यवहार सभी के साथ हमेशा के लिए अच्छा ही बना रहेगा। और जब सब के साथ हमारा व्यवहार अच्छा होगा तो जीवन में आनंद ही आनंद ही रहेगा।
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