राजा भीमसेन और कर्मफल

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राजा भीमसेन और कर्मफल

बहुत समय पहले की बात है। भीमसेन नामक एक राजा अपने राज्य में सुख से राज किया करते थे। वे एक पुरुषार्थी और चक्रवर्ती सम्राट थे।मगर उनके राज ज्योतिष ने धीरे धीरे उनकी मति ज्योतिष की तरफ पूरी तरह से मोड़ दी थी। अतः वे मुहूर्त जाने बिना कोई भी काम नहीं करते थे। राजा के इस व्यवहार से प्रजा और सभासद सभी को बड़ी चिंता होने लगी।



एक दिन राजा भीमसेन अपने राज्य के दौरे पर निकले। उनके साथ राज ज्योतिष भी थे। तभी उन्हें रास्ते में एक किसान मिला जो हल-बैल लेकर खेत जोतने जा रहा था। राज ज्योतिष ने उसे रोककर कहा, “अरे मूर्ख! जानता नहीं, आज जिस दिशा में दिशाशूल है, तू उसी दिशा में जा रहा है। ऐसा करने से तुझे भयंकर हानि उठानी पड़ेगी।”

राज ज्योतिष ने यह बात राजा भीमसेन के सामने अपना ज्ञान दिखाने के उद्देश्य से कही थी। किसान दिशाशूल के बारे में कुछ नहीं जानता था, अतः उसने सहजता से कहा, “मैं तो रोजाना इसी दिशा में जाता हूँ। आज नहीं, पिछले कई वर्षों से ऐसा कर रहा हूँ। उनमें दिशाशूल वाले दिन भी आए होंगे। यदि आपकी बात सच होती तो कब का मेरा सर्वनाश हो गया होता। जबकि मैं तो बहुत सुख से जी रहा हूँ।”

किसान का उत्तर सुनकर राज ज्योतिष सकपका गया। वह अपनी झेंप मिटाने के लिए बोला, “लगता है, तेरी कोई हस्तरेखा बहुत प्रबल है। ला अपना हाथ दिखा।”

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किसान ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया किन्तु हथेली नीचे की और रखी। ऐसे में राज ज्योतिष चिढ़कर बोला, “मूर्ख! इतना भी नहीं जानता कि हस्तरेखा दिखाने के लिए हथेली ऊपर की ओर रखी जाती है।”

किसान नाराज होकर बोला, “हथेली वह फैलाये जिसे किसी से कुछ मांगना हो। मैं जिन हाथों की कमाई से अपना गुजारा करता हूँ, उसे क्यों किसी के सामने फैलाऊँ। मुहूर्त तो वह देखे जो कर्महीन और निठल्ला हो। मुझे तो अपने कर्म और कर्मफल पर जरा भी आशंका नहीं है।”

यह सुनकर राज ज्योतिष को कोई जवाब नहीं सुझा। परन्तु राजा भीमसेन समझ गए की वो राज ज्योतिष के चक्कर में आकर कर्मफल के प्रभाव को ही भूल बैठे। जबकि किसी के जीवन को सवांरने में कर्मफल ही सबसे अधिक प्रभावी होता है।

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